भक्ति रस
भक्ति तो भगवान की आह्लादित शक्ति है। स्वरूप शक्ति एव भक्ति शक्ति:। भक्ति के विवश होकर भगवान सब कुछ करते है भक्ति के समान कुछ भी नहीं है। भक्ति के विवश होकर भगवान श्री कृष्ण विदुरानी के केले के छिलके खाते,दुर्योधन के मेवा त्यागते,महाभारत में अपनी प्रतिज्ञा तोड़ कर शास्त्र उठाते हैं शबरी के झूठे बेर खाते,अपना समस्त ऐश्वर्य भूल जाते,ठाकुराई भूल जाते,यशोदा जी के हाथ से बंध जाते , सखाओ को ऊपर चढ़ाकर घोड़े की चाल चलते ,अर्थात क्या नही करते भगवान। सब कुछ करते । धन्यवाद,,श्री कृष्णा।