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भक्ति रस

भक्ति तो भगवान की आह्लादित शक्ति है। स्वरूप शक्ति एव भक्ति शक्ति:। भक्ति के  विवश होकर भगवान सब कुछ करते है भक्ति के समान कुछ भी नहीं है। भक्ति के विवश होकर भगवान श्री कृष्ण विदुरानी के केले के छिलके खाते,दुर्योधन के मेवा त्यागते,महाभारत में अपनी प्रतिज्ञा तोड़ कर  शास्त्र उठाते हैं शबरी के झूठे बेर खाते,अपना समस्त ऐश्वर्य भूल जाते,ठाकुराई भूल जाते,यशोदा जी के हाथ से बंध जाते ,  सखाओ को ऊपर चढ़ाकर घोड़े की चाल चलते ,अर्थात क्या नही करते भगवान। सब कुछ करते ।         धन्यवाद,,श्री कृष्णा। 

Astrology

 शास्त्रों में ज्योतिष को भगवान का नेत्र कहा गया है, जहां समस्त   ग्रह नक्षत्र , राशि,तारामंडल आदि का अध्ययन होता है उसे ज्योतिष शास्त्र कहते हैं। वैसे ज्योतिष शास्त्र में गणितीय  भाग प्रमुख हैं। आधुनिक समय में ज्योतिष शास्त्र में तंत्र या सिद्धांत, होरा,शाखा, विशेष होता है। 1 तंत्र या सिद्धांत =इसमें गणित द्वारा ग्रहों की गति या और नक्षत्रों की गणना की जाती है। 2 होरा= इसका  विशेष संबंध कुंडली से होता है , इसके तीन भाग होते हैं, क–  जातक, ख– विवाह, ग–यात्रा 3 शाखा =इसमें शकुन परीक्षण लक्षण परीक्षण भविष्यवाणी का कथन होता है। इन तीन स्कंधो का (तंत्र, होरा ,शाखा) के ज्ञाता को संहितापारक कहते हैं। ज्योतिष प्रमुख रूप से पांच प्रकार की होती हैं  1 अंक ज्योतिष 2 फलित ज्योतिष  3 सिद्धांत ज्योतिष  4 वेदांग ज्योतिष  5 खगोल शास्त्र।  वेदों में ज्योतिष के नक्षत्र राशियों का ज्ञान मिलता है जोकि वेदों पुराणों में प्रकट हैं। धन्यवाद  आज इतना ही लेख समयाभाव है।